Red Fort of Delhi: Treasures of Historical Heritage – दिल्ली का लाल किला: ऐतिहासिक विरासत का खजाना

देश की राजधानी दिल्ली अपनी ऐतिहासिक इमारतों की वजह से दुनियाभर में मशहूर है। दुनिया भर से हजारों सैलानी हर साल दिल्ली की तारीख़ी इमारतों को देखने आते हैं। दिल्ली में लाल किला एक सदाबहार आकर्षण है जो पूरे साल यात्रियों को आकर्षित करता है। लाल किला दिल्ली के शीर्ष पर्यटन स्थलों में से एक है।

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लाल किला, दिल्ली का एक बेहद ख़ास तारीख़ी किला है जो मुग़लिया सल्तनत के सुनहरी दौर की याद दिलाता है। इसे 17वीं शताब्दी में मुगल बादशाह शाहजहां ने बनवाया था। यह लाल ईंटों से बना है, जिसकी वजा से इसे “लाल किला” के नाम से जाना जाता है। किले की विशाल लाल बलुआ पत्थर की दीवारें, जो 75 फीट (23 मीटर) ऊँची हैं, इसके अंदर हमें भारतीय इतिहास, कला, और संस्कृति के उपलब्धियों का एक अनमोल संग्रह मिलता है। लाल किला वास्तुशिल्प का एक शानदार नमूना है। यह किला आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। किले को यूनेस्को द्वारा मान्यता दी गई है। 2007 में इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।

लाल किला : इतिहास

लाल किला 1648 में पांचवें मुगल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी राजधानी शाहजहांनाबाद के लिए महल किले के रूप में बनवाया था। जब उन्होंने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली ले जाने का फैसला किया तो उन्होंने यमुना नदी के किनारे किले के निर्माण का आदेश दिया। मुगल सम्राट शाहजहां ने आगरा में स्थित ताजमहल को भव्य रुप देने वाले डिजाइनर और मुगल काल के प्रसिद्ध वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी को इस किले की शाही डिजाइन बनाने के लिए चुना था। 1638 में इसका निर्माण शुरू हुआ और तक़रीबन 10 साल यानी 1648 में पूरा हुआ। 49.1815 हेक्टेयर (256 एकड़) में फैले दिल्ली के लाल किला परिसर में बगल का पुराना किला सलीमगढ़ भी शामिल है, जिसे इस्लाम शाह सूरी ने 1546 में बनवाया था। लाल किला यमुना नदी के तट पर निर्मित है, जिसका पानी किले के चारों ओर की खाई में जाता था।

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यह शाही किला मुगल बादशाहों का न सिर्फ राजनीतिक केन्द्र था बल्कि यह औपचारिक केन्द्र भी हुआ करता था, जिस पर करीब 200 सालों तक मुगल वंश के शासकों का राज रहा।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार, लाल किले में इमारत के निर्माण के दौरान कई हिस्से चूना पत्थर इस्तेमाल किया गया था, इसलिए इसका रंग पहले सफेद था। समय के साथ किला की दीवारों पर लगा चूना पत्थर गिरने लगा, तो अंग्रेज शासन के दौरान इस किले को लाल रंग का करवा दिया गया। इसी के बाद इसका नाम लाल किला रखा गया।तब से यही नाम प्रचलित है। कहते हैं इस किले का असल नाम किला-ए-मुबारक था , जिसका अर्थ है ‘धन्य किला’। इसका नाम शाहजहां की ओर क्या रखा गया था, इसकी पुख्ता जानकारी इतिहासकारों के पास नहीं है।

तीन शताब्दियों से ज़्यादा के अपने इतिहास के दौरान, किले पर कई शासकों ने कब्ज़ा किया, जिनमें औरंगज़ेब, जहाँदार शाह, मुहम्मद शाह और बहादुर शाह द्वितीय शामिल हैं।

लाल किला : वास्तुकला (आर्किटेक्चर)

दिल्ली का लाल किला मुगल वास्तुकला की प्रतिभा को दर्शाता है। 255 एकड़ में फैले इस किले में इस्लामी, हिंदी, तैमूरी और फारसी जैसी स्थापत्य शैलियों का मिश्रण है।

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75 फीट ऊंची लाल बलुआ पत्थर (रेड सैंडस्टोन) की दीवारों से घिरे लाल किला के ग्राउंड में महल, शाही रानियों के निजी कक्ष, मनोरंजन हॉल, शाही भोजन एरिया, प्रोजेक्टिंग बालकनियाँ, स्नानागार, नहरें (नहर-ए-बिहिष्ट या स्वर्ग की धारा), बाग, एक मस्जिद, बाओली और दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास शामिल हैं।

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लाल किले की आदर्श वास्तुकला, शानदार नक्काशियों और भव्य रूप लोगों का मनमोहन करता है। इसकी ऊँचाई, भव्यता, और विशालता दर्शकों से वाहवाही कराती है और उन्हें अपनी प्राचीनता और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक महत्व का अनुभव कराती है। लाल किले का निर्माण कार्य शिल्पकारी की श्रेष्ठता का प्रतीक है जो आज भी हमें आश्चर्यचकित करता है।

इसमें संगमरमर का प्रयोग, भव्य द्वार, और सुंदर नक्काशियाँ हैं, जो इसे अद्वितीय बनाते हैं। लाल किला न केवल एक भव्य स्मारक है, बल्कि यह भारतीय वास्तुकला की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि भी है। लाल किला ने इसके बाद बने दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के प्रमुख स्मारकों की वास्तुकला को प्रभावित किया है।

लाल किला परिसर (Red Fort Complex) :

लाल किले का परिसर विशाल है और यह अनेक अत्यंत महत्वपूर्ण भवनों से युक्त है। इन भवनों का विवरण नीचे देखा जा सकता है:

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इनमें से कुछ प्रमुख भवनों का विवरण निम्नलिखित है:

दिवान-ए-आम: जनता की आवाज़ का मंच

यहां पर सम्राट शाहजहाँ जनता के समस्याओं को सुनने के लिए आते थे और उनके समाधान का प्रयास करते थे। इसमें एक बड़ा मंच होता था, जिस पर सम्राट अपने राज्य के नागरिकों के साथ वार्ता किया करते थे। यहां लोग अपनी समस्याओं को सम्राट के सामने रखते और उनसे न्याय या मदद की गुज़ारिश करते।

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इस भवन की विशेषता उसकी विशाल छत और अत्यधिक वास्तुकला में है। यहां की दीवारों पर चित्रण, नक्काशी, और मोती बुने गए थे, जो इसे अद्वितीय बनाता है। इसके भव्य स्तंभ और आवाज की गुंजायमानता लोगों को आकर्षित करती है।

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दिवान-ए-आम न केवल एक भवन है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। यह उस समय की याद दिलाता है, जब सम्राट अपने राज्य के लोगों की समस्याओं के लिए चिंतित थे और उन्हें सहायता प्रदान करने का प्रयास किया करते थे। इसका दौरा करना एक अद्वितीय अनुभव है, जो हमें हमारे इतिहास के महत्वपूर्ण पलों को समझने और महसूस करने का अवसर प्रदान करता है।

दीवान-ए-ख़ास : (निजी सभा कक्ष)

यह भवन राजनीतिक और धार्मिक विषयों के लिए महत्वपूर्ण था। यहां सम्राट अपने विशेष अतिथियों और मंत्रियों के साथ बैठकें करते थे और महत्वपूर्ण निर्णय लेते थे।

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इसमें सफेद संगमरमर का मंडप है जो कीमती पत्थरों से जड़ा हुआ है। एक बार जो छत चांदी की हुआ करती थी उसे लकड़ी की छत में बहाल कर दिया गया है।

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मोती मस्जिद :

यह एक छोटी तीन गुम्बद वाली, तराशे हुए सफ़ेद संगमर्मर से निर्मित मस्जिद है। इसका मुख्य फलक तीन मेहराबों से युक्त है। मोती मस्जिद औरंगजेब की निजी मस्जिद थी। मस्जिद में कदम रखते ही आप एक दूसरी ही दुनिया में चले जाते हैं। मस्जिद की नक्काशी आप का मन मोह लेती है।

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बावली (सीढ़ीदार कुआं) :

लाल किले में एक बावली यानी सीढ़ीदार कुआं भी है जो किले की पीने के पानी की ज़रुरत पूरी करता थी। माना जाता है कि बावली तुगलक़ युग की है, जिसे शाहजहाँ ने पुनर्निर्मित किया था जब लाल किले का निर्माण किया जा रहा था। ब्रिटिश काल के दौरान, बावली का उपयोग विद्रोहियों को कैद करने के लिए किया जाता था। अब बावली को संरक्षित करने के लिए आम जनता के लिए बंद कर दिया गया है।

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